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"संगीत की असली मिठास: टीवी के म्यूज़िकल शोज़ से लाइव कॉन्सर्ट तक"

"संगीत की असली मिठास: टीवी के म्यूज़िकल शोज़ से लाइव कॉन्सर्ट तक"

जब पहली बार सोनी टीवी पर इंडियन आइडल शुरू हुआ था, तो उस समय का माहौल आज भी मेरी यादों में ताज़ा है। मुझे वह शो देखने में बेहद अच्छा लगा, बल्कि यूँ कहूँ कि दिल को छू गया। इससे पहले भी टीवी पर सा रे गा मा, मेराठॉन म्यूज़िकल चैलेंज, और कई अन्य संगीत आधारित कार्यक्रम आते थे।

उन दिनों इन शोज़ को देखना और सुनना मेरे लिए एक अलग ही अनुभव होता था। मैं सिर्फ़ देखता ही नहीं था, बल्कि कई बार आँखें बंद करके गानों को सुनता था, ताकि सुर, ताल और भावनाओं की गहराई को महसूस कर सकूँ।

क्योंकि वह असली संगीत था — दिल को सुकून देने वाला, बिना किसी दिखावे के।

पहला इंडियन आइडल: कुछ नया, कुछ असली

जब पहला इंडियन आइडल आया, तो उसमें एक ताज़गी थी, एक सच्चाई थी। प्रतियोगी अपनी आवाज़ और मेहनत के दम पर आगे बढ़ते थे। उस समय ऐसा लगता था कि सच में टैलेंट की कद्र हो रही है और लोगों को असली संगीत सुनने को मिल रहा है।

लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते गए, रियलिटी शोज़ में "रियल" कम और "ड्रामा" ज़्यादा होने लगा। कहानी बदलने लगी…

रियलिटी के नाम पर स्क्रिप्टेड ड्रामा

धीरे-धीरे टीवी के इन म्यूज़िकल शोज़ में नकली शोर, बनावटी इमोशन और जबरन पैदा किए गए विवाद आने लगे। दर्शकों को बांधने के लिए जजों के बीच नकली झगड़े दिखाए जाने लगे, प्रतियोगियों की निजी कहानियों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाने लगा।

जहाँ कभी संगीत के लिए मंच सजता था, वहाँ अब टीआरपी के लिए स्क्रिप्ट लिखी जाने लगी।

मैं खुद भी कई बार जज के रूप में ऐसे आयोजनों में गया हूँ जहाँ कई अन्य जज मौजूद होते थे। हमने कभी एक-दूसरे से बहस या लड़ाई नहीं की, क्योंकि संगीत का मकसद जोड़ना होता है, तोड़ना नहीं। लेकिन आजकल टीवी पर इसके उलट दिखाया जाता है — ताकि दर्शक बोर न हों, भले ही संगीत पीछे छूट जाए।

संगीत हमें शालीन बनाता है

संगीत हमेशा से इंसान को विनम्र और संवेदनशील बनाता आया है।

इतिहास में देखें तो जितने बड़े संगीतकार हुए, वे उतने ही ज़्यादा शालीन और सरल स्वभाव के थे।

  • मोहम्मद रफ़ी साहब — जिनकी विनम्रता की मिसालें आज भी दी जाती हैं
  • मुकेश जी — जिनकी आवाज़ में सच्ची भावनाएँ बहती थीं
  • लता मंगेशकर जी — जिनका स्वर ही पूजा के समान था
  • ए. आर. रहमान — जो आज भी शांत और सादगी से जीते हैं
  • लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल — जिनका संगीत और टीमवर्क दोनों अद्भुत था

ये सभी महान कलाकार हमें सिखाते हैं कि जितना बड़ा कलाकार बनो, उतना ही बड़ा इंसान बनो।

आज का हाल: असली संगीत बनाम टीवी शो

आज स्थिति यह है कि कई बड़े म्यूज़िकल शो में कलाकारों को "लड़ाका" टाइप दिखाया जाता है। नकली शोर जोड़कर माहौल गरमाया जाता है, ताकि सोशल मीडिया पर क्लिप वायरल हों।

लेकिन असली संगीत तो वह है जिसे सुनकर मन को शांति मिले, ना कि तनाव।

मेरी सलाह: लाइव कॉन्सर्ट का आनंद लीजिए

अगर आप सच में संगीत प्रेमी हैं, तो मेरा मानना है कि आपको टीवी के म्यूज़िकल शोज़ पर समय बर्बाद करने की बजाय लाइव कॉन्सर्ट में जाना चाहिए।

वहाँ आप कलाकार को असली रूप में सुनेंगे, महसूस करेंगे, और संगीत के हर सुर को अपने दिल में उतार पाएँगे। लाइव संगीत का असर कई गुना ज़्यादा होता है — वहाँ न कोई स्क्रिप्ट होती है, न नकली शोर, न टीआरपी का दबाव।

आपके लिए मेरी मदद

अगर आप अपने शहर में किसी भी अच्छे कलाकार का लाइव कॉन्सर्ट आयोजित करना चाहते हैं, तो मैं आपकी पूरी मदद कर सकता हूँ।

बस www.deckm.in के चैट बॉक्स में

  • अपना शहर का नाम
  • अपना ईमेल आईडी
  • और किस तरह की मदद चाहते हैं, यह लिख दें।

मैं आपकी आवश्यकताओं के अनुसार सही कलाकार और व्यवस्था में मदद करूँगा।

क्योंकि असली संगीत का मज़ा तभी है जब उसे दिल से सुना जाए, बिना किसी नकली ड्रामे के।

निष्कर्ष:

संगीत की असली मिठास टीवी की चमक-धमक में नहीं, बल्कि उन सुरों और लयों में है जो सीधे दिल को छू जाएँ। आइए, हम सब असली संगीत को अपनाएँ और अपने मन को उस सुकून से भरें जिसकी आज के समय में सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

https://www.deckm.in/blog/blog-1/sangeet-pratiyogitaon-me-transparency-29