🎶 राग बैरव : भारतीय शास्त्रीय संगीत का अनमोल रत्न
भारतीय शास्त्रीय संगीत की परंपरा में प्रत्येक राग का अपना विशेष महत्व है। राग न केवल सुरों का संयोजन है, बल्कि यह भावनाओं का सुंदर प्रस्फुटन भी है। ऐसे ही रागों में से एक है – राग बैरव। यह राग अपनी गंभीरता, शांति और अध्यात्मिकता के लिए जाना जाता है।
🔹 राग बैरव का स्वरूप
राग बैरव को सुबह का राग कहा जाता है। इसका गायन और वादन प्रातःकाल (सुबह 4 बजे से 8 बजे तक) अत्यंत उपयुक्त माना जाता है। इस राग के सुर सुनते ही वातावरण में भक्ति, गाम्भीर्य और एक अद्भुत शांति का अनुभव होता है।
- जाति (Jati): सम्पूर्ण – सम्पूर्ण (आरोह और अवरोह दोनों में 7-7 स्वर प्रयोग होते हैं)
- थाट (Thaat): बैरव
- वादी स्वर: ध
- सम्वादी स्वर: ग
- आरोह: सा रे(कोमल) ग म प ध(कोमल) नि सा
- अवरोह: सा नि ध(कोमल) प म ग रे(कोमल) सा
🔹 विशेषताएँ
- राग बैरव में रे और ध कोमल प्रयोग होते हैं, जो इसे गंभीर और गम्भीर स्वरूप प्रदान करते हैं।
- यह राग प्रायः भक्ति-रस और गंभीर भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए प्रयोग किया जाता है।
- इसका स्वभाव शांत, गंभीर और अध्यात्मिक होता है।
🔹 समय और प्रभाव
राग बैरव का गायन प्रातःकाल किया जाता है। इसे सुनने और गाने से मन को शांति मिलती है और ध्यान की अवस्था का अनुभव होता है। यह राग मनुष्य के भीतर छिपी हुई अध्यात्मिकता और गंभीरता को जागृत करता है।
🔹 उपराग और प्रयोग
बैरव थाट से ही कई अन्य राग निकले हैं, जैसे भैरवी, अहिर बैरव, जोगिया, ललित इत्यादि। इन सबमें राग बैरव की गम्भीरता और शांति का स्पर्श देखने को मिलता है।
✨ निष्कर्ष
राग बैरव भारतीय शास्त्रीय संगीत का वह राग है, जो मनुष्य को आत्मिक शांति और भक्ति की ओर ले जाता है। यह न केवल सुरों का संगम है बल्कि अध्यात्म और भावनाओं की एक अद्भुत यात्रा भी है।
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