🎯 भूमिका: संगीत साधना और शरीर-मन की तैयारी
जिस प्रकार किसी भी खेल को खेलने से पहले खिलाड़ी को उस खेल के अनुसार शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होना पड़ता है — वैसे ही गायन या वादन में भी एक कलाकार को शारीरिक और मानसिक रूप से उस साधना के योग्य बनाना पड़ता है।
और इस तैयारी में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं — अलंकार।
🧠 मानसिक और शारीरिक अनुशासन — संगीत की नींव
कई लोग सोचते हैं कि संगीत केवल एक स्वर या राग की जानकारी है। लेकिन वास्तव में, यह एक समग्र अनुशासन है। जब कोई गायक या वादक रियाज़ करता है, तो उसका मन, शरीर और ध्यान — तीनों एक साथ सक्रिय होते हैं।
- मन: स्वर की सूक्ष्मता और भावना को पकड़ता है
- शरीर: साँस, गला, हाथों की गति आदि को नियंत्रित करता है
- ध्यान: हर क्षण “क्या बज रहा है” या “क्या गाया जा रहा है” उस पर केंद्रित रहता है
अलंकार इन तीनों के समन्वय को साधने में मूलभूत अभ्यास का काम करते हैं।
🎼 गायक के लिए अलंकार का महत्व
गायन में अलंकारों का अभ्यास सुर की शुद्धता, गति, और स्थिरता लाता है। विशेषकर शुरुआत में जब कोई छात्र सुर पकड़ने की कोशिश कर रहा होता है, तो उसे सबसे पहले चाहिए:
- सही “सा” की पहचान
- उसके अनुसार गले की स्केल सेट करना
- हर थाट में अलंकार का अभ्यास
🎵 उदाहरण:
मान लीजिए कोई गायक स्केल “C” में गा रहा है। उसे “सा रे गा मा...” के साथ-साथ उल्टे क्रम में भी (सा नि धा प...) अभ्यास करना चाहिए। यही अभ्यास आगे चलकर तान, लयकारी, और मुरकी जैसी जटिल चीज़ों में मदद करता है।
🎹 वादकों के लिए — स्केल में लचीलापन जरूरी
कुछ वाद्य जैसे हारमोनियम, सारंगी, या सैक्सोफोन ऐसे होते हैं जिन्हें गायकों की संगत में बजाना होता है। अब हर गायक का स्केल अलग हो सकता है — कोई C में गाएगा, कोई E में, कोई G# में।
इसलिए हारमोनियम वादक को:
- हर स्केल में अलंकार की पकड़ होनी चाहिए
- हर थाट में सुरों की ऊँचाई और गहराई को समझना चाहिए
- उंगलियों की स्थिति हर स्केल में अभ्यास से अपने आप ढलनी चाहिए
यही बात सैक्सोफोन, फ्लूट, या किसी भी स्केल-डिपेंडेंट वाद्य पर लागू होती है।
❓ कौन-सा अलंकार सबसे अच्छा होता है?
बहुत से छात्र पूछते हैं:
“सर, सबसे अच्छा अलंकार कौन-सा होता है?”
मेरा उत्तर स्पष्ट है:
हर अलंकार महत्वपूर्ण है — जैसे गिनती में हर अंक।
जैसे गिनती में 0 के बिना 10 की कल्पना नहीं की जा सकती, वैसे ही “सा रे गा” बिना “सा” की गहराई के अधूरे हैं।
किसी भी अलंकार को छोड़कर आगे बढ़ना ऐसा है जैसे गणित में 1 के बाद सीधा 65 सीखना। ये तरीका शायद तेज लगे, लेकिन गहराई नहीं लाता।
🪜 क्रमवार अभ्यास — संगीत में स्थिर प्रगति की कुंजी
हर अलंकार का अभ्यास क्रमवार (sequential) होना चाहिए।
जैसे:
- सरल आरोह-अवरोह
- मंद्र और तार सप्तक के साथ मिश्रण
- अलग-अलग थाट में अभ्यास
- बढ़ती गति में पकड़
एक बार जब शरीर इन स्वर-क्रमों का “muscle memory” बना लेता है, तब गायक या वादक बिना सोचे ही उसे व्यक्त कर पाता है।
🧘♂️ अलंकार और तन-मन का योग
कभी गौर कीजिए — जब आप अलंकारों का अभ्यास कर रहे होते हैं:
- आपकी आँखें बंद होती हैं
- ध्यान सिर्फ स्वर पर होता है
- हाथ या गला संयम में होते हैं
- साँस की गति नियंत्रित होती है
ये सब सिर्फ संगीत नहीं — ये एक प्रकार का ध्यान भी है।
और यही कारण है कि पुराने समय में अलंकारों को "संगीत योग" का हिस्सा माना गया।
🔁 रिवीजन और गहराई
जब कोई शिष्य कहता है:
"मैं तो अब 25 अलंकार सीख चुका हूँ, अब मुझे कुछ नया चाहिए।"
तो मैं कहता हूँ —
उन 25 को फिर से करो — और हर बार उसमें नया भाव खोजो।
क्योंकि अलंकारों में गहराई अनंत है।
आप जितनी बार “सा रे गा मा” गाते हैं, हर बार आपकी समझ थोड़ी और बढ़ती है।
📌 निष्कर्ष: अलंकार — अभ्यास नहीं, आत्मा का निर्माण
संगीत कोई चलती-फिरती स्किल नहीं — यह एक जीवनशैली है।
और इस जीवनशैली की शुरुआत होती है — अलंकारों से।
चाहे आप गायक हों या वादक, चाहे शुरुआत कर रहे हों या 10 साल से साधना में हों — अलंकार कभी पुराने नहीं होते।
हर स्केल, हर थाट, हर समय में इनका अभ्यास आपको:
- स्थिर बनाएगा
- मानसिक रूप से सजग रखेगा
- और शारीरिक रूप से तैयार रखेगा
🎤 अंत में…
"गला या वाद्य जब बोले, तो उसमें आपका मन झलके — यही संगीत है। और मन को तैयार करने का रास्ता अलंकारों से होकर ही जाता है।"
https://www.deckm.in/blog/blog-1/harmonium-a-sensitive-instrument-that-needs-special-care-24